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शमी वृक्ष का औषधीय उपयोग, खाद्य मूल्य और पूजा के उद्देश्य से पूरा पेड़ बहुत लाभदायक है।
शमी के वृक्ष के फायदे

शमी के वृक्ष

भारत में शमी (प्रोसोपिस सिनेरिया) के आगमन के संबंध में कई अलग-अलग राय हैं। प्रोसोपिस सिनेरिया, जिसे स्थानीय रूप से खेजड़ी के नाम से जाना जाता है, भारत का मूल निवासी है और थार रेगिस्तान में किसानों के लिए आजीविका के स्रोत के रूप में एक महत्वपूर्ण वृक्ष है। यह वृक्ष कृषि प्रणालियों का एक मुख्य हिस्सा हैं और उत्तर भारत के शुष्क क्षेत्रों के किसानों को पशुओं के लिए चारा, ईंधन लकड़ी और सब्जियां प्रदान करते हैं। खेजड़ी के पेड़ों की अधिक संख्या वाली भूमि का राजस्थान में प्रीमियम मूल्य मिलता है। संबंधित फसलों के साथ शमी की गैर-प्रतिस्पर्धी प्रकृति के कारण, एकीकृत कृषि वानिकी प्रणाली में पेड़ों की पंक्तियों के बीच के अंतराल में कई शुष्क भूमि फसलों की खेती की जा सकती है। हालाँकि, शमी एक प्रचलित प्रजाति है और भारत में इसके परिचय के बारे में अलग-अलग लोगों के अलग-अलग विचार हैं। 1940 में जोधपुर राज्य के पूर्व राजा द्वारा इसे "शाही पौधा" घोषित किया गया और सरकारी संरक्षण में रखा गया। राजस्थान में रेत के टीलों और रेतीले तूफानों को रोकने के लिए इस पेड़ की बड़े पैमाने पर हवाई बुआई की गई।

शमी के वृक्ष के फायदे

वास्तु शास्त्र के मुताबिक शमी का पौधा बहुत ही शुभ होता है। वास्तु के अनुसार शमी का पौधा घर में लगाने से वास्तु दोष दूर होता है और घर की सब बाधाएं मिट जाती हैं। घर में शमी का पेड़ (Shami tree) लगाने से सुख, शांति व धन की प्राप्ति होती है। इसे लगाने से पॉजिविटी आती है शनि भगवान की भी कृपा बनी रहती है और अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में शनिदोष है तो इस पौधे को लगाने और हर शनिवार के दिन पूजा करने से शनिदोष का प्रभाव कम होने लगता है और शनिदोष से मुक्ति भी मिल सकती है। साथ ही यह नकारात्मक ऊर्जा से भी बचाता है। भगवान शिव को भी शमी का पौधा अत्यंत प्रिय है। सावन में शिवलिंगी पर शमी के पत्ते चढाने पर शिव प्रसन्न होते है। ये पौधा घर में सुख-समृद्धि व सम्पन्नता लाता है। इसलिए इसे धन आकर्षित वाला पेड़ कहा गया है। इसके पत्तों का इस्तेमाल भगवान गणपति और देवी दुर्गा की पूजा के लिए किया जाता है। मरुभूमि में अकाल या कम वर्षा की स्थिति में एक व्यवस्क शमी वृक्ष से 50-60 किलोग्राम खाद्य आहार प्राप्त हो जाता है। जिसमे पशुओं का चारा व उत्तम सांगरी मिलती है।

पूजा के लिए शमी का पौधा

शमी वृक्ष का फूल से लेकर फली तक, जड़ से लेकर तने तक हर हिस्से का फायदा होता है। औषधीय उपयोग, खाद्य मूल्य और पूजा के उद्देश्य से पूरा पेड़ बहुत महत्वपूर्ण है। शमी लगभग सभी प्रकार की मिट्टी के साथ बालू रेत, दोमट मिटटी पर आसानी से उगता है। कम विषम परिस्थितियों में शमी अक्सर खुले शुष्क, वुडलैंड्स का निर्माण करते हैं, जो रेगिस्तानी पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर महत्वपूर्ण समुदाय हैं। जिससे मिट्टी का क्षरण रुकता है और रेगिस्तान को फैलने से रोकता है। शमी के विकास दर और शाखाओं में बंटने में काफी फेनोटाइपिक भिन्नता होती है। पौधों के लक्षणों में फेनोटाइपिक भिन्नता आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारकों से काफी प्रभावित होती है। शमी के अत्यधिक खारे तटीय क्षेत्रों में उगने वाले पारिस्थितिक प्रकारों की भी पहचान की गई है। शमी वृक्ष की आयु 400 से 500 वर्ष होती है। कहीं कहीं इससे भी अधिक पुराना वृक्ष देखा गया है। शमी वृक्ष मुख्यतः रेतीली, दुमट, हलकी पथरीली मिट्टी में व कम वर्षा (100 से 900 मिलीमीटर) वाले क्षेत्र में बहुत ही अच्छे से पनपता है।

यह वृक्ष समुद्र तल से 600 मीटर तक की ऊंचाई पर बढ़ता है। यह पेड़ क्षारीय मिट्टी में पाया जाता है जहां पीएच 9.8 तक पहुंच सकता है।

शमी की उत्पत्ति थार रेगिस्तान से हुई है। यहाँ से यह दक्षिण की ओर तमिलनाडु, पूर्व की ओर पश्चिम बंगाल, बांग्ला देश और पश्चिम की ओर अफगानिस्तान और ईरान से आगे ओमान, यमन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, अबू धाबी और सोमालिया तक फैल गया। यह मैदानों में, कृषि क्षेत्रों, जंगलों, रेतीले टीलों में बहुतायत पाया जाता है और भारत में शुष्क क्षेत्र कृषि वानिकी प्रणालियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। शमी अन्य प्रोसोपिस प्रजातियों की तुलना में अधिक धीरे-धीरे बढ़ता है।


शमी वृक्ष में पाए जाने वाले पोषक तत्व व विटामिन

शमी में पोषक तत्व प्रोटीन 8%, कार्बोहाइड्रेट 58%, कैल्शियम 0.4 %, रेसा 28%, वसा 2%, फास्फोरस 0.2%, शर्करा 12%, खनिज लवण 8% पाए जाते है। इसमें विटामिन के (K) की मात्रा पायी जाती है।

“शमी वृक्ष के उपयोगी तत्व :-”

शमी के लिए जलवायु

जलवायु के अत्यधिक परिवर्तन में भी शमी पनप सकता है और जीवित रह सकता है। यह रेगिस्तान में रेत के टीलों से लेकर मैदान तक और पथरीली भूमि पर भी पाया जाता है। जलवायु के अनुसार शमी की ग्रोथ पर प्रभाव पड सकता है। अत्यधिक ठंढ में अर्थात -4 डिग्री सेल्सियस और भंयकर गर्मियों में अर्थात 55+ डिग्री सेल्सियस में भी शमी को जीवित देखा गया है। जहां वार्षिक वर्षा 400-800 मिमी की सीमा में होती है वहाँ शमी (प्रोसोपिस सिनेरिया) यह अच्छी तरह से बढ़ता है, शमी अत्यधिक कम वर्षा (75-250 मिमी तक) या बहुत शुष्क परिस्थितियों में भी अनुकूलित होती है जो रेगिस्तान के टीलों या रेतीले मैदानों पर होती है। यह वृक्ष 6-8 महीने बिना पानी या सूखे अवधि में भी जीवित रह सकता है। शमी अपनी सीधी और गहरी जड़ से भूजल स्तर से पानी निकालने में सक्षम है। बताया गया है कि 7 वर्ष से अधिक पुराने शमी वृक्ष वर्षा आधारित प्रबंधन के तहत उगने में सक्षम हैं। शमी वृक्ष की जड़ों में वातावरण से नाइट्रोजन इकट्ठा करने की क्षमता होती है। यह रइजोबियम बैक्टीरिया के कारण होता है। जिससे शमी के आस-पास उगाई जाने वाली फसलों में उत्पादकता सदैव उत्तम और अधिक रहती है।

शमी पौधे को घर में लगाने के फायदे

धर्म ग्रंथों के अनुसार हिंदू धर्म में प्राचीन काल से ही शमी के पौधे को बहुत ही पवित्र और पूजनीय माना गया है। ऐसा माना जाता है कि शमी का पौधा घर-परिवार में सुख समृद्धि के साथ-साथ आर्थिक तंगी को भी दूर करता है। कहते हैं कि शमी के पौधे को घर में लगाने मात्र से शनिदेव की कृपा बनी रहती है व इसकी पूजा करने पर शनिदेव सारे कष्ट दूर कर देते है।

शमी के औषधीय फायदे

औषधि के क्षेत्र में शमी के पौधे का अत्यधिक महत्व है। पौधे के विभिन्न भाग जैसे पत्तियाँ, छाल, फल, फूल, जड़ आदि का उपयोग औषधीय रूप में किया जाता है। इसका उपयोग कई रोगों जैसे मानसिक विकार, श्वसन तंत्र संक्रमण, दाद, खुजली, दस्त, प्रदर, गले का दर्द, दांत दर्द, मूत्रजनन संबंधी विकार, खांसी, पित्त दोष आदि के उपचार में किया जाता है। कुष्ठ रोग, पेचिश, अस्थमा, ल्यूकोडर्मा, अपच और कान दर्द जैसी कई बीमारियों को ठीक करने के लिए पारंपरिक चिकित्सा में शमी (प्रोसोपिस सिनेरेरिया) का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

आंखों के दर्द के लिए शमी पत्र औषधि रूप में असरकारक हैं। शमी पत्र की तासीर शीतल होती है जिससे आंखों की जलन और दर्द को कम करते हैं। शमी के पत्ते को पीसकर तांबे के बर्तन में घी, जौ के साथ मिला लें, फिर इसे सुखाकर आंखों पर लगाएं।

काली मिर्च और शहद के साथ शमी के पत्तों का सेवन करने से ये दस्त की परेशानी को दूर करते हैं। शमी के पत्ते और छाल को भी पीस छाछ में मिला कर भी पीने से ये पेट को आराम मिलता है।

आंतों में पाए जाने वाले कीड़ों को खत्म करने के लिए शमी के पत्तों का रस एक औषधि का काम करती है।

अल्सर होने पर शमी के पेड़ की छाल का प्रयोग सलाहनुसार किया जा सकता है। सुखी हुई छाल को पीस कर बिच्छू के डंक मारने वाले स्थान पर लगाने से लाभ होता है। खाज खुजली होने पर शमी वृक्ष की छाल को पीस कर लेप लगाने से आराम मिलता है। पिसी हुई छाल का काढ़ा गले में खराश और दांत दर्द में राहत देता है।

अत्यधिक गर्मी में चलने वाली लू से बचाव के लिए शमी के पत्तों का रस निकालकर पानी में जीरे और शकर के साथ मिलाकर पीने चाहिए इससे राहत मिलती है।

एनीमिया रोग के उपाय के लिए मिश्री के साथ शमी के नए कोमल पत्तों (मार्च से अगस्त तक) के पेस्ट 1-2 ग्राम में बराबर मात्रा में मिला कर लें।

शमी का फल - सांगरी :- शमी का फल सांगरी दो प्रकार की होती हैं कच्ची या गीली सांगरी और सूखी सांगरी जिसे खोखा भी कहते हैं। दोनों प्रकार की फल के फायदे भी हैं।

ताजा कच्ची हरी सांगरी बहुत स्वादिष्ट होती है और ताजा सांगरी (कच्ची फलियां) से बनाने वाली सबसे महंगी सब्जी राजस्थान ही नहीं अपितु पुरे भारत में अपना विशेष स्थान रखती है। थार शोभा खेजड़ी की सांगरी उच्च उपज और बेहतर गुणवत्ता वाली किस्म की होती है। इसे सब्जी के उपयोग के लिए एक समान तथा कोमल फली के लिए तैयार किया गया है। ग्राफ्टेड खेजड़ी के पौधा में उच्च गुणवत्ता की कोमल फली (सांगरी) तैयार होती है। कच्ची हरी सांगरी पुरे वर्ष उपलब्ध नहीं होती है केवल मार्च और अप्रैल महीने के कुछ दिनों तक ही उपलब्ध होती है। इसे कच्ची सांगरी, गीली सांगरी, हरी सांगरी आदि नामों से जाना जाता है। कच्ची सांगरी की सब्जी का सेवन करने से डिहाइड्रेशन की समस्या नहीं होती है। इसके सेवन से घुटनों के दर्द से राहत मिलती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में भी मदद मिलती है। कच्ची हरी सांगरी में विटामिन्स होते है जो लाभकारी होते है। गीली हरी सांगरी में औसतन 8% प्रोटीन, 58% कार्बोहाइड्रेड, 28% रेशा, 2% वशा, 0.4% कैल्शियम, 0.2% लौह तत्व पाए जाते है। थार शोभा खेजड़ी के पौधों का बगीचा विकसित कर उत्तम गुणों वाली ताजा हरी सांगरी से तुरंत आय ली जा सकती है। तथा सुखी सांगरी से पुरे वर्ष भर आय प्राप्त की जा सकती है।

ताजी सांगरी- हरी सांगरी- कच्ची सांगरी

हरी सांगरी

सूखी सांगरी राजस्थान के गांवों में बनती है भारत की सबसे महंगी सब्जी। यह काजू और बादाम से भी तीन से पांच गुना तक महँगी होती है। सूखी सांगरी की सब्जी और स्वादिष्ट अचार बनाये जाते हैं। शमी के वृक्ष पर मार्च - अप्रैल में कच्ची सांगरी तैयार होती है जो कुछ दिनों तक ही रहती है अतः कच्ची हरी सांगरी को गर्मियों में सुखाया जाता है, इसे सूखी सांगरी कहा जाता है। सुखी सांगरी को लम्बे समय तक भण्डारण किया जा सकता है। सूखी सांगरी में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फास्फोरस, शर्करा, खनिज लवण पाए जाते हैं, जो पेट में कब्ज को दूर करने में मदद करते हैं। आंखों को स्वस्थ रखता है, अगर आप सप्ताह में दो या तीन दिन सांगरी अचार का सेवन करते हैं तो इससे आंखों की लाली और जलन खत्म हो जाती है। केर सांगरी की सब्जी और अचार के सेवन से हृदय और कैंसर की बीमारी का खतरा कम होता है और साथ ही यह सर्वोत्तम पोषक तत्व मूल्य प्रदान करता है। केर-सांगरी की ऑनलाइन कीमत 2500-3000 रुपए प्रति किलो तक है।

शोध के अनुसार राजस्थान की पंचकूटा सब्जियों में कई अन्य ताजे वाणिज्यिक फलों और सब्जियों की तुलना में बहुत अधिक पोषण होता है। यह शुद्ध रूप से जैविक (ऑर्गेनिक) सब्जी है। सांगरी की सबसे बड़ी विशेषता यह है की इसे अनिश्चित समय के लिए इसके शुष्क प्रारूप को संरक्षित कर सकते हैं। अर्थात लम्बे समय तक इसका भण्डारण किया जा सकता है। यदि पंचकूटा सब्जी बिना पानी का उपयोग किए तैयार की जाती है तो यह सब्जी 3-4 दिनों तक उपयोग के लिए रहती है। यह भारतीय परिवारों की पहली पसंद है जो यात्रा के लिए घर का खाना ले जाना पसंद करते हैं।

ताजी सांगरी- हरी सांगरी- कच्ची सांगरी

सूखी सांगरी

जैविक खाद और कीटनाशक :- जैविकखेती के लिए शमी की पत्तियों, छाल से जैविक खाद और कीटनाशक तैयार किया जाता हैं। शमी के पेड़ों के नीचे ही अन्य फसलों सब्जी की खेती कर अच्छा लाभ लिया जा सकता हैं। कृषि वैज्ञानिकों की माने तो शमी के पेड़ के नीचे खेती करने पर फसल अधिक होती है क्योकि शमी के नीचे भूमि में पानी की नमी ज्यादा दिनों तक बनी रहने से फसल ज्यादा दिनों तक पानी नहीं मांगती। शमी की पत्तियाँ जो नीचे गिरती है वो भी एक उत्तम उर्वरक का काम करती है। देशी कीटनाशक बनाने के लिए शमी की पत्तियाँ व नीम की पत्तियों को 10 लीटर गोमूत्र के साथ 20 दिन तक मिट्‌टी के बर्तन में रखें। बाद में घोल को छानकर फसल सब्जी पर छिड़काव करने से कीटरोग खत्म हो जाते हैं।

पौष्टिक चारा :- खेजड़ी की पत्तियाँ पशुओं के चारे के रूप में काम आती। है जिसे लूंग कहते हैं। लूंग पशुधन के लिये उपयोगी व उत्तम पौष्टिक आहार है। इसे ऊँट, बकरी, भेड़ आदि बड़े चाव से खाते हैं। इसकी पत्तियों में 14-18 प्रतिशत प्रोटीन, 15-20 प्रतिशत रेशा तथा 8 प्रतिशत खनिज तत्व पाये जाते हैं।

शमी वृक्ष की लकड़ी का उपयोग राजस्थान में जलाऊ लकड़ी के रूप में किया जाता है। हवन और यज्ञ में समिधा के रूप में भी काम में लिया जाता है।

शमी वृक्ष के पत्ते जहां पर पत्ते गिरते हैं। वहां की जमीन की उर्वरता बढ़ जाती है। जिससे फसल की उत्पादकता में बढ़ोतरी होती है। क्योकि इसकी जड़े लिग्युमिअनस होती है। इसकी जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणु राईजोबियम पाए जाते हैं। जो की फसलों की उत्पादकता में बढ़ोतरी का मुख्य करक होती है।

शमी वृक्ष से मार्च व अप्रैल माह में गोंद भी प्राप्त होता है।

शमी का धार्मिक महत्व

सनातन धर्म में सभी पेड़-पौधों को पूजनीय माना गया है। कुछ वृक्षों की हर दिन पूजा की जाती है। जैसे तुलसी, पीपल, बरगद, बेल-पत्र इनके साथ एक और वृक्ष है जिसकी पूजा सुबह-शाम की जाती है वो है शमीवृक्ष। शमी वृक्ष को महाभारत काल से ही पूजनीय व वंदनीय माना गया है। वास्तु शास्त्र के अनुसार शमी का पौधा अत्यन्त ही शुभ माना गया है। शनि का दोष होने पर शनिवार के दिन शमी के पौधे की पूजा करने पर दोष कम होता है। शनि की साढ़ेसाती होने पर घर पर शमी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए। शमी का पौधा भगवान शिव जी को भी बहुत प्रिय है। भोलेनाथ को शमी पत्र चढ़ाये जाते है। शास्त्रों के अनुसार, रामायण में अपने वनवास काल के दौरान भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले शमी के पेड़ की पूजा की थी और महाभारत में पांडवों ने अपने वनवास काल के दौरान अपने शस्त्रों को शमी के पेड़ में छिपा दिया था।

धर्म ग्रंथों के अनुसार हिंदू धर्म में प्राचीन काल से ही शमी के पौधे को बहुत ही पवित्र और पूजनीय माना गया है। ऐसा माना जाता है कि शमी का पौधा घर-परिवार में सुख समृद्धि के साथ-साथ आर्थिक तंगी को भी दूर करता है। कहते हैं कि शमी के पौधे को घर में लगाने मात्र से शनिदेव की कृपा बनी रहती है व इसकी पूजा करने पर शनिदेव सारे कष्ट दूर कर देते है। इसके अलावा शमी के पौधे को घर में लगाने से बरकत होती है और पैसो की तंगी दूर होती है।

घर में कहां लगाएं शमी का पौधा

वास्तु के अनुसार , घर में शमी का पेड़ दक्षिण दिशा में लगाना चाहिए। शमी के पेड़ पूर्ण वृक्ष होने पर बहुत बड़ा हो जाता है। इसलिए खुली जगह पर लगाना चाहिए। जैसे मुख्य दरवाजा के बाहर या गार्डन में आदि। घर के अंदर भी शमी के पौधे को लगा सकते है। गमले में छत या बालकनी में ही शमी के पौधे को लगाना चाहिए। क्योकि इसे धुप में रखना जरुरी है। घर के मुख्य द्वार पर दाईं तरफ शमी के पौधे को लगाना बेहद शुभ माना जाता है। मुख्य द्वार पर इसे इस तरह लगाएं कि जब भी आप घर से बाहर जाएं तो शमी का पौधा आपके दाई तरफ होना चाहिए। छत पर शमी का पौधा दक्षिण दिशा में ही लगाना चाहिए, अगर ऐसा संभव न हो तो पूर्व दिशा मे भी शमी के पौधे को लगा सकते हैं। शनिवार के दिन शमी के पौधे को लगाना शुभ माना जाता है। तुलसी की तरह ही शमी के पौधे की रोज पूजा करनी चाहिए और दीपक जलाना चाहिए। अगर रोज दीपक जलाना संभव न हो तो प्रत्येक शनिवार के दिन शमी के पेड़ के नीचे दीपक जरूर जलाना चाहिए।

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